शिष्टाचार की राजनीति: शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी और के.के. बिश्नोई की तस्वीर का संदेश

अरविंद थोरी, बालोतरा

राजनीति के कठोर गलियारों में जब कभी विनम्रता, आदर और शिष्टाचार की झलक दिखती है, तो वह केवल एक क्षण भर की तस्वीर नहीं होती, बल्कि एक मजबूत संदेश बन जाती है। लोकतंत्र में मतभेद हो सकते हैं, मनभेद नहीं।

ऐसी ही एक तस्वीर बाड़मेर जिला मुख्यालय से सामने आई, जहां एक विशेष  बैठक में गुड़ामालानी विधायक एवं राज्य मंत्री श्री के.के. बिश्नोई ने शिव विधायक श्री रविंद्र सिंह भाटी का सार्वजनिक मंच पर ससम्मान सेल्यूट कर राजनीतिक शालीनता की मिसाल पेश की। यह दृश्य इसलिए भी उल्लेखनीय बन गया क्योंकि दोनों नेता अलग-अलग राजनीतिक ध्रुवों का प्रतिनिधित्व करते हैं।  एक मंत्री भाजपा की सरकार का हिस्सा हैं, तो दूसरा निर्दलीय जनप्रतिनिधि के रूप में जनता की आवाज है।

रविंद्र सिंह भाटी का नाम पहली बार बड़े राजनीतिक मंच पर तब गूंजा जब उन्होंने 2023 की राजस्थान विधानसभा चुनावों में शिव विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की। यह चुनाव केवल एक सीट की लड़ाई नहीं थी, यह स्थापित दलों के वर्चस्व के बीच से एक युवा नेतृत्व के उभरने की दास्तान थी।

भाटी, जेएनयू जोधपुर के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष रहे हैं और छात्र राजनीति के अनुभव से निखरे हुए तेजस्वी वक्ता हैं। कांग्रेस से अमीन खान और भाजपा से स्वरूप सिंह खारा जैसे कद्दावर नेताओं के बीच उन्होंने जिस निडरता से चुनाव लड़ा और फतेह खान जैसे बागी उम्मीदवार की उपस्थिति में भी जीत हासिल की, वह बताता है कि जनता उन्हें एक विकल्प नहीं, भविष्य के रूप में देख रही थी।

राजपूत समाज के संगठित समर्थन, युवाओं की फौज, शिक्षा और शालीनता से परिपूर्ण छवि ने भाटी को जनप्रतिनिधि नहीं, जनआस्था का प्रतीक बना दिया।

जब वे राजस्थान विधानसभा पहुंचे, तो उन्होंने अपना पहला भाषण राजस्थानी भाषा में देकर न केवल क्षेत्रीय अस्मिता को सम्मान दिया बल्कि संकेत दिया कि वे “लोक की भाषा” में ही जनभावनाएं व्यक्त करेंगे। विधानसभा की सीढ़ियां को नतमस्तक कर सदन में प्रवेश करना उनकी विनम्रता का प्रतीक बना और युवाओं में उनके प्रति एक नया विश्वास जागा, कि यह  नेता अहंकार नहीं, सेवा की भावना लेकर आया है।

2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाटी ने बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किस्मत आज़माई। भाजपा से पुर्व मंत्री कैलाश चौधरी हार गए, कांग्रेस से उम्मेदाराम बेनीवाल विजयी रहे, लेकिन भाटी की हार में भी हार नहीं थी बल्कि यह उनके लिए अनुभव और परिपक्वता का एक अध्याय था, जिसमें उन्होंने क्षेत्र की जनता से सीधा संवाद कायम किया।

बाड़मेर में आयोजित बैठक में, जब के.के. बिश्नोई जैसे वरिष्ठ मंत्री ने रविंद्र भाटी को मंच पर सम्मानपूर्वक सेल्यूट करते हैं, तो यह केवल मंचीय औपचारिकता नहीं थी। यह एक पीढ़ी को दिया गया संकेत था कि राजनीति में मतभेद हो सकते हैं, पर व्यक्तिगत मर्यादा और आदर का स्थान सर्वोपरि है।

यह घटना केवल व्यक्तिगत नहीं है, यह संस्थागत मर्यादा और लोकतांत्रिक संस्कृति की गवाही है। खासकर ऐसे समय में जब राजनीतिक कटुता, वैमनस्य और छींटाकशी ने संवाद की जगह कब्जा कर ली हो, तब यह तस्वीर राजनीति को नई दिशा देती है।

इस घटना में युवाओं के लिए कई सबक हैं। राजनीति केवल भाषणों, नारों या ध्रुवीकरण की नहीं है, यह आचरण, मर्यादा और व्यवहार की भी है। रविंद्र भाटी जैसे नेता जब संघर्ष से उठकर मर्यादा की राजनीति करते हैं और के.के. बिश्नोई जैसे मंत्री उसे सार्वजनिक रूप से सम्मान देते हैं, तो लोकतंत्र मजबूत होता है।

राजनीति की सुंदरता इसी में है कि मंच साझा करने वाले भले ही विचारधारा में भिन्न हों, मगर जनता के लिए उनका संकल्प एक हो।

राजनीति में अगर ऐसे दृश्य बार-बार दिखें, तो शायद युवा भी इससे प्रेरणा लेकर व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहें और यही लोकतंत्र की असली जीत होगी।

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