लेखक: अरविंद थोरी, संपादक – बालोतरा टाइम्स
“राजनीति में बहुत लोग आते हैं, पर बहुत कम ऐसे होते हैं जो सादा जीवन, स्पष्ट सोच और संविधान के प्रति अटूट निष्ठा का प्रतीक बनते हैं – जगदीप धनखड़ उन्हीं विरलों में एक थे।”
झुंझुनूं की मिट्टी से उपराष्ट्रपति भवन तक
राजस्थान की ग्रामीण धरती, झुंझुनूं जिले की गोद में जन्मे जगदीप धनखड़ ने अपने जीवन की शुरुआत एक सामान्य किसान परिवार में की। उनकी शिक्षा दीक्षा गांव से शुरू होकर राजस्थान विश्वविद्यालय और फिर दिल्ली तक पहुँची। वे न केवल एक बेहतरीन वकील बने बल्कि संविधान की गहराइयों में उतरने वाले बुद्धिजीवी भी। सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में उन्होंने न्याय के लिए लड़ी कई लड़ाइयों से खुद को साबित किया।
राजनीति में प्रवेश और सिद्धांतों की मिसाल
धनखड़ का राजनीतिक जीवन 1989 में जनता दल से शुरू हुआ, जब वे पहली बार झुंझुनूं से लोकसभा के लिए चुने गए।
उन्होंने केंद्रीय मंत्री के रूप में भी कार्य किया और बाद में भाजपा से जुड़कर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में एक निर्णायक और सक्रिय भूमिका निभाई। पश्चिम बंगाल की राजनीति में जब टकराव की स्थिति बनी, तब उन्होंने संविधान के अनुरूप लोकतांत्रिक संस्थानों की गरिमा बनाए रखी।
उपराष्ट्रपति पद पर गरिमापूर्ण नेतृत्व
11 अगस्त 2022 को वे भारत के 14वें उपराष्ट्रपति बने। उनके कार्यकाल में राज्यसभा की गरिमा, संसद की मर्यादा और संवाद की संस्कृति को एक नई दिशा मिली। उन्होंने बार-बार कहा—
“राज्यसभा को तर्क का मंच बनाइए, तकरार का नहीं।”
उनकी शैली स्पष्ट, संतुलित और मर्यादित रही। उन्होंने सत्ता और विपक्ष – दोनों से संवाद बनाए रखा, पर संविधान से कभी समझौता नहीं किया।
वैश्विक मंच पर भारत की आवाज
उपराष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। लोकतंत्र पर वैश्विक चर्चा— हर जगह धनखड़ ने भारतीय दृष्टिकोण को दृढ़ता से रखा और भारत की गरिमा को बढ़ाया।
जनता से सीधा जुड़ाव
धनखड़ उन चुनिंदा नेताओं में थे जो पद पर बैठकर भी ज़मीन से जुड़े रहे। वे किसानों की पीड़ा समझते थे, युवाओं की आकांक्षाओं से जुड़े थे और संविधान की आत्मा के प्रहरी थे। उनका व्यंग्यात्मक भाषण, विनम्र लहजा और तटस्थ सोच, राज्यसभा की कार्यवाही को सजगता और संवेदनशीलता से भर देती थी।
स्वास्थ्य कारणों से त्यागपत्र, पर आदर्श अमिट
21 जुलाई 2025 को जब उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया, तब देशभर में राजनीतिक गलियारों से लेकर आम जनता तक एक ही बात उठी—
“इतनी गरिमा और सादगी वाला उपराष्ट्रपति बहुत समय बाद देखा था।”
उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में लिखा—
“मैं चिकित्सा सलाह का पालन करते हुए अपने स्वास्थ्य की प्राथमिकता को देखते हुए तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे रहा हूं।”
धनखड़ की विरासत: संविधान, शुचिता और संवाद
उनका कार्यकाल यह सिखाता है कि सत्ताधारी पद भी संवेदनशील, गरिमापूर्ण और निष्ठावान हो सकता है। वे न केवल एक उपराष्ट्रपति थे, बल्कि संविधान के सजग प्रहरी, लोकतंत्र के शिक्षक और जनभावनाओं के सच्चे प्रतिनिधि थे।
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से एक युग का अंत हुआ है, लेकिन उन्होंने जो मानक स्थापित किए हैं, वे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देंगे। हम उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हैं।
“गरिमा, ज्ञान और जनसंवाद – यही थे उपराष्ट्रपति धनखड़ के तीन स्तंभ।”
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