अरविंद थोरी, बालोतरा टाइम्स
राजस्थान की तपती रेत से उठकर गुजरात के व्यापारिक नक्शे पर अपनी पहचान बनाने वाले एक नाम को आज हजारों लोग सोशल मीडिया पर फॉलो करते हैं – भारमल राम पावड़। यह कहानी है संघर्ष, सादगी और संकल्प की। यह कहानी है सिणधरी पंचायत समिति के छोटे से गांव डण्डाली में 1961 के आसपास जन्मे एक सामान्य किसान परिवार के बालक की, जिसने कभी स्कूल की शक्ल तक नहीं देखी, लेकिन आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुका है।

भेड़ चराने से ट्रक मालिक बनने तक का सफर
बाल्यकाल में जब वे गांव के तालाब किनारे भेड़-बकरियां चरा रहे थे, तभी एक दिन एक बालक के डूबने की घटना ने उनकी पूरी जिंदगी की दिशा बदल दी। बालक को तो बचा लिया, पर उन पर गहने चुराने का झूठा आरोप लगा और गांव में बुरी तरह पीटे गए। उस अपमान की चोट इतनी गहरी थी कि मात्र 10-12 साल की उम्र में उन्होंने गांव छोड़ दिया और नाखोड़ा के एक होटल में बर्तन धोने, ठेला खींचने जैसे छोटे-मोटे कामों से जीवन की असली पाठशाला में प्रवेश लिया।

1978: गुजरात की ओर पहला कदम
संघर्षों की गठरी सिर पर उठाए 1978 में वे गुजरात पहुंचे। यहां ट्रक खलासी के रूप में शुरुआत की और फिर मेहनत की उस सड़क पर चल पड़े जहां सिर्फ जज़्बा था और सपना। 1980 में लाइट और 1990 में हैवी लाइसेंस लेकर उन्होंने खुद गाड़ी चलाना शुरू किया। धीरे-धीरे ईमानदारी और मेहनत के दम पर उन्होंने माजिसा रोड लाइंस नाम से ट्रांसपोर्ट कंपनी खड़ी की। साथ ही मार्बल का कारोबार भी शुरू किया जो आज उनकी स्थायी कमाई का जरिया है।

आज भी देसी, आज भी ज़मीन से जुड़े
चार बेटों के पिता भारमल राम का पूरा परिवार आज आत्मनिर्भर है, लेकिन वे अब भी देहाती वेशभूषा, सादगी और गांव की जड़ों से जुड़े रहना पसंद करते हैं। गौसेवा और धार्मिक कार्यों में रुचि रखने वाले भारमल राम सोशल मीडिया पर खासे लोकप्रिय हैं। वे मारवाड़ी भाषा में अपने अनुभव साझा करते हैं, फेसबुक पर लाइव आते हैं और लोगों को प्रेरणादायक कहानियां सुनाते हैं।

राजनीति में निस्वार्थ भाव से सक्रिय
2017 में नागौर के खींवसर में जब उनके ट्रक पर एक झूठा केस दर्ज हुआ, तब उन्होंने हनुमान बेनीवाल से मदद मांगी। बिना जान-पहचान के भी बेनीवाल ने फोन उठाया और इंसाफ दिलवाया। बस, यहीं से भारमल राम का जीवन एक और मोड़ लेता है – अब वे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) और हनुमान बेनीवाल के समर्पित कार्यकर्ता हैं।

2018 और 2023 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने सिवाना विधानसभा में पार्टी प्रचार की पूरी जिम्मेदारी निभाई। भले ही पार्टी की चुनावी रणनीति में उतार-चढ़ाव आए हों, लेकिन उनका समर्पण नहीं डगमगाया। आज भी वे बिना किसी पद, लाभ या मान की इच्छा के, हर रैली में अपने खर्चे पर पहुंचते हैं, भाषण देते हैं और मंच पर बेनीवाल के साथ खड़े होते हैं।

सोशल मीडिया पर देसी नवाचार
भारमल राम सिर्फ बोलते नहीं, कुछ हटकर करते भी हैं। उन्होंने प्लास्टिक की बोतलों पर कपड़े की डोरियों से हनुमान बेनीवाल का नाम उकेरा, चारपाइयों पर RLP के नाम बुनवाए, और ये सब सोशल मीडिया पर साझा किया। ये नवाचार उनके वीडियो को अलग पहचान देते हैं और स्थानीय मीडिया व यूट्यूब चैनलों में उन्हें खास चर्चा दिलाते हैं।

समाज के लिए संदेशवाहक
भारमल राम न केवल राजनीतिक रूप से जागरूक हैं, बल्कि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी मुखर रहते हैं। वे युवाओं को अपनी संस्कृति, मेहनत और ईमानदारी की सीख देते हैं। उनका जीवन खुद इस बात की मिसाल है कि बिना किसी डिग्री, पद या धन के भी कोई व्यक्ति लोगों के दिलों में अपनी जगह बना सकता है।

अंत में बस इतना ही कहना चाहेंगे…
“सादगी में गरिमा हो, और संघर्ष में संकल्प – तो पहचान अपने आप बनती है।”

भारमल राम पावड़ का जीवन उसी पहचान की गवाही है।

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