पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण नहीं, भारतीय मूल्यों का पालन करें– श्री आदुराम माचरा

विशेष संवाद | बालोतरा टाइम्स

यह कटु सत्य है कि संसार उगते सूर्य को ही नमन करता है – अर्थात सफलता, पराक्रम व उल्लास से परिपूर्ण जीवन ही समाज को प्रेरित करता है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से भरा हो, उसके आने मात्र से एक ऊर्जा का संचार होता है। ऐसे रचनात्मक चरित्र ही समाज के चुम्बक बनते हैं, जिनसे लोग स्वतः आकर्षित हो जाते हैं। आज आवश्यकता है कि हम शिक्षा को गम्भीरता से लें, विशेषकर बालिका शिक्षा को प्राथमिकता दें। जब समाज शिक्षित होगा, तभी सुसंस्कृत, नैतिक और जागरूक नागरिकों का निर्माण होगा। श्री माचरा का मानना है कि आज की युवा पीढ़ी को धर्म, संस्कृति और परंपरा के मूल्यों के साथ चलना चाहिए। पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण भारतीय समाज की आत्मा को खोखला कर सकता है। इससे बचना और अपने सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करना हम सभी का कर्तव्य है।

“समाज को शिक्षा के प्रकाश से रोशन करने की जरूरत है, तभी एक सभ्य और समरस समाज का निर्माण सम्भव है।”

श्रीमती खेमी देवी चौधरी का जीवन परिचय जन्म व पृष्ठभूमि: – श्रीमती खेमी देवी चौधरी का जन्म लगभग 30 वर्ष पूर्व श्री अन्नाराम सियाग के घर ग्राम केरालापाना (कादानाड़ी), पंचायत समिति पायला कलां, जिला बाड़मेर में हुआ। उन्होंने साक्षरता अर्जित की और ग्रामीण परिवेश से जुड़ाव रखते हुए समाजसेवा में कदम रखा।

राजनैतिक यात्रा:

वर्ष 2021 में आपने पंचायत समिति पायला कलां के वार्ड संख्या 11 से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और 94 मतों से विजय प्राप्त की। उनका उद्देश्य अपने सम्पूर्ण क्षेत्र में चहुँमुखी विकास सुनिश्चित करना है – जिसमें शिक्षा, स्वच्छता, महिला जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाएं प्राथमिकता में हैं।

पारिवारिक योगदान:-

श्रीमती खेमी देवी का परिवार सदैव समाजसेवा, शिक्षा प्रसार एवं राजनीतिक सक्रियता में अग्रणी रहा है।

ससुर स्व. हरखाराम माचरा: वन विभाग में वनरक्षक के पद से सेवानिवृत्तपति!

श्री आदुराम माचरा:

स्नातक, डी-फार्मा प्रशिक्षित, वर्ष 2015–2020 तक पंचायत समिति सिणधरी के सदस्य रहे। वर्तमान में सत्ती माता मेडिकल स्टोर, पायला कलां के संचालक।

दो पुत्र – रावता राम व रमेश कुमार, अध्ययनरत

विचार और संदेश:-

श्रीमती चौधरी और श्री माचरा दोनों का मानना है कि – “निःस्वार्थ भाव से समाज के साथ जुड़कर चलने वाला व्यक्ति ही वास्तव में प्रगति कर सकता है।” समाज का विकास, तभी संभव है जब हम आपसी सौहार्द, शिक्षा के प्रसार, और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा को प्राथमिकता दें। युवाओं को चाहिए कि वे शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बने और अपने अधिकारों के साथ कर्तव्यों को भी समझें।

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