विशेष संवाद | बालोतरा टाइम्स
- “समाज तभी आगे बढ़ता है जब संस्कार, शिक्षा और परंपरा तीनों का संतुलन बना रहे।”
इसी सोच को आत्मसात करते हुए ग्राम पंचायत एड़ सिणधरी के सरपंच श्री जसाराम जी लेघा आज ग्राम विकास के एक मजबूत स्तंभ के रूप में पहचाने जाते हैं।
✦ शिक्षा और संस्कृति की अलख
श्री लेघा का मानना है कि यदि हम समाज को सुशिक्षित, सुसंस्कृत और सशक्त बनाना चाहते हैं तो बालिका शिक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। बालिका शिक्षा न केवल परिवार की रीढ़ है, बल्कि हमारी भारतीय संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को भी अक्षुण्ण रखने का माध्यम है। वर्तमान समय में जब युवा वर्ग तेजी से पाश्चात्य प्रभाव में बहता जा रहा है, तब श्री लेघा का स्पष्ट संदेश है – “विकास की दौड़ में आगे बढ़ो, पर अपनी जड़ों से जुड़े रहो।”
✦ प्रेरणादायक जीवन-यात्रा
15 जुलाई 1980 को जन्मे श्री जसाराम जी लेघा की प्रारंभिक शिक्षा गांवों की गोद में हुई और उच्च माध्यमिक शिक्षा उन्होंने बाड़मेर से पूर्ण की। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने करीब दो दशकों तक आमजन से जुड़कर फोटोस्टेट, टेंट हाउस एवं तहसील में पत्र लेखन जैसे सेवा कार्यों से न केवल जीविका चलाई, बल्कि समाज के हर तबके से जुड़ाव बनाए रखा।राजनीति में उनकी यात्रा वर्ष 2010 में शुरू हुई जब उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुनीता देवी पंचायत समिति की सदस्या बनीं। 2015 में स्वयं चुनाव लड़ा, और भले ही मामूली मतों से पीछे रहे, लेकिन जनता के दिलों में जगह बना ली। 2020 में जब सरपंच पद के लिए मैदान में उतरे तो 530 मतों से बड़ी जीत दर्ज की।

✦ विकास की दिशा में समर्पण
श्री लेघा का मूल लक्ष्य है – ग्राम पंचायत में चहुंमुखी विकास। शिक्षा, पेयजल, सड़क, ढाणियों का विद्युतीकरण, ग्रामीण योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुँचाना – इन सभी मोर्चों पर वे निरंतर सक्रिय हैं। उनकी कार्यशैली में समर्पण, सजगता और संवादशीलता तीनों झलकती हैं।
✦ परिवार – सेवा और संस्कार की पाठशाला
उनका परिवार शुरू से ही सामाजिक सेवा और राजनीति में सक्रिय रहा है। पिताजी श्री केहनाराम जी लेघा एक उन्नत कृषक हैं, माताजी श्रीमती टीपू देवी एक अनुकरणीय गृहिणी। पत्नी श्रीमती सुनीता देवी, पुत्र ओमप्रकाश और विरेंद्र शिक्षा की राह पर हैं। भाईगण मोटाराम, चैनाराम और दल्लाराम, सभी कृषि, शिक्षा और व्यवसाय में समाज को नई दिशा देने में जुटे हैं।
✦ युवाओं के नाम संदेश
“युवाओं को चाहिए कि वे नशा, चोरी और दुराचार से दूर रहकर समाज निर्माण में जुटें।सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई जब तक नहीं लड़ी जाएगी, तब तक समाज की गति थमती रहेगी।” श्री लेघा मानते हैं कि बुजुर्गों के अनुभव, संस्कृति की गरिमा और युवा शक्ति की ऊर्जा – इन तीनों को साथ लेकर ही समाज का सतत विकास संभव है। उनकी स्पष्ट सोच है –“अपने बुजुर्गों के बताए मार्ग पर चलना ही सच्चा विकास है।”
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