ब्रह्म ऋषि तुलसाराम: तप, सेवा और समाज-संस्कार का जीवंत उदाहरण

“भारत के मठ और मंदिर: साधु-संन्यासियों की भूमिका” पर बालोतरा टाइम्स विशेष रिपोर्ट

✍ अरविंद थोरी / संपादक, बालोतरा टाइम्स
✍ डुंगर सिंह राजपुरोहित / सह संपादक


“भारत — एक भूमि, जहाँ हर कण में संस्कृति है, हर श्वास में श्रद्धा और हर पर्वत, नदी, वन और धाम में आत्मा की खोज रची-बसी है।”


यह कोई साधारण देश नहीं, बल्कि ऋषियों की तपोभूमि, संतों की साधना और मठों-मंदिरों की पुकार से गूंजती सजीव परंपरा है। यहाँ मंदिर केवल पत्थर की दीवारें नहीं, बल्कि धर्म, दर्शन और दिशा के जीवंत केंद्र हैं। यहाँ मठ केवल संन्यासियों की शरणस्थली नहीं, बल्कि समाज को नैतिकता, संयम और सेवा का पाठ पढ़ाने वाली विश्वविद्यालय जैसी संस्थाएं हैं।


इन मठों और मंदिरों से जुड़े साधु-संन्यासी न तो केवल भगवा वस्त्रधारी होते हैं, और न ही केवल मंत्रोच्चारण के दायरे में सीमित रहते हैं। उनका जीवन तप का प्रतीक, आचरण का आदर्श और समाज के लिए जीवन समर्पण की मिसाल होता है। उन्होंने हजारों वर्षों से भारतीय समाज को सांस्कृतिक दिशा, आध्यात्मिक मार्गदर्शन और सामाजिक चेतना प्रदान की है।



इसी सनातन परंपरा की एक ज्वलंत, जीवंत और जागृत कड़ी हैं – राजस्थान की तपोभूमि बालोतरा के समीप ब्रह्मधाम आसोतरा के पूज्य ब्रह्म ऋषि 1008 श्री तुलसाराम जी महाराज, जिनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि संन्यास केवल आत्मकल्याण का नहीं, अपितु जनकल्याण का माध्यम भी हो सकता है।

उनकी साधना केवल मौन नहीं, संदेश है।
उनकी सेवा केवल कर्म नहीं, क्रांति है।
और उनका आश्रम केवल तीर्थ नहीं, सामाजिक जागरण की मशाल है।

आज हम जानेंगे कि कैसे ब्रह्म ऋषि तुलसाराम जी महाराज ने परंपरा को पुनर्परिभाषित किया और ब्रह्मधाम आसोतरा को समाज सुधार का केन्द्र तथा मंदिर को समर्पण की पाठशाला बना दिया।


जन्म, प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक प्रवृत्ति

“साधु बनना एक वेश नहीं, वह एक वेदना है… एक विरक्ति है… और सबसे बढ़कर, एक व्रत है — जो आत्मा को संपूर्ण समाज के हित में समर्पित कर देता है।”

पूज्य ब्रह्म ऋषि तुलसाराम जी महाराज का प्रारंभिक जीवन भी एक सामान्य ग्रामीण बालक के रूप में आरंभ हुआ, लेकिन उनके भीतर बचपन से ही असाधारण तेज, करुणा और आत्मिक झुकाव के बीज अंकुरित हो चुके थे। जहां एक ओर संसार के आकर्षण अपने शिखर पर थे, वहीं दूसरी ओर उनका अंतर्मन सांसारिक मोह के बंधनों को तोड़ सत्य की तलाश में भटक रहा था।

वे राजस्थान की उस तपोभूमि से निकलकर साधना-पथ पर अग्रसर हुए, जहाँ भौतिक संसाधनों से अधिक आध्यात्मिक आचरण को महत्व दिया जाता रहा है। उनकी आंखों में केवल ईश्वर नहीं था, बल्कि समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए सेवा का सपना भी था।

शुरुआती दिनों में उन्होंने संत शिरोमणि ब्रह्मालीन खेताराम जी की दीक्षा प्राप्त की। उनके भीतर एक-एक कर सभी सांसारिक वासनाएं जलकर राख होती गईं और उनकी चेतना केवल परहित की तपश्चर्या में रम गई।

साधना के इस मार्ग पर उन्होंने जिस त्याग, तप और तपस्या का परिचय दिया, वह उन्हें एक सामान्य संन्यासी से ब्रह्म ऋषि तुल्य स्थान तक ले गया। वह केवल एक सन्यासी नहीं बने — वे बने एक प्रकाशस्तंभ, जिनकी रोशनी आज भी बालोतरा ही नहीं, राजस्थान और पुरे देश के जनमानस को दिशा दे रही है।

बाल्यकाल की सहजता, युवावस्था की तपस्या और संन्यास की परिपक्वता — इन तीनों को उन्होंने इतने सधे स्वर में साधा कि आज उनकी उपस्थिति ही एक प्रेरणा है।


विक्रम संवत 2009 की अनंत चतुर्दशी को ब्रह्ममुहूर्त में उनका जन्म इंद्राणा गांव के धार्मिक राजपुरोहित परिवार में हुआ। बाल्यकाल से ही वे गंभीर, स्फूर्तिवान और धर्मशील रहे। कृषि, गौ सेवा और लोकहित की ओर उनका स्वाभाविक झुकाव था। घर में सतत साधु-संतों का आगमन होता था, जिससे उनका मन सहज ही अध्यात्म की ओर आकर्षित हुआ।


“जहाँ संत बैठते हैं, वहाँ केवल भजन नहीं, समाज का भविष्य भी रचा जाता है…”

राजस्थान की पावन भूमि बालोतरा के समीप स्थित ब्रह्मधाम आसोतरा कोई साधारण तीर्थ नहीं, बल्कि यह एक ऐसी धार्मिक-सामाजिक प्रयोगशाला है, जिसकी नींव में त्याग, सेवा और समर्पण की ईंटें रखी गई हैं। इसकी स्थापना केवल एक आश्रम या मंदिर बनाने के लिए नहीं की गई थी, बल्कि इसे मानव सेवा, गौ-संरक्षण और आध्यात्मिक चेतना के केंद्र के रूप में विकसित किया गया।

ब्रह्मलीन ऋषि खेताराम जी महाराज ने यह तीर्थ तब स्थापित किया, जब समाज दिशाहीनता और विकृतियों के दौर से गुजर रहा था। उन्होंने केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक स्वयं को सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने गांव-गांव जाकर शिक्षा, गौसेवा और व्यसनमुक्त जीवन का संदेश दिया।

गौशाला: करुणा की जीवंत प्रतिमा

ब्रह्मधाम की गौशाला आज हजारों गायों की सेवा कर रही है — न केवल उनकी रक्षा करती है, बल्कि यह किसानों, गौभक्तों और पशुपालकों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है।

मानवसेवा के विविध रूप

ब्रह्मधाम में हर रोज़ सैकड़ों लोगों को निशुल्क भोजन (अन्नक्षेत्र), चिकित्सा शिविर, आध्यात्मिक प्रवचन और सामाजिक जागरूकता शिविरों का लाभ मिलता है। यह आश्रम नहीं, एक सेवा केंद्र है — जहाँ साधु-संन्यासियों ने खुद को समाज के प्रति समर्पित कर दिया है।

सामाजिक सौहार्द का केंद्र

यह आश्रम जाति, पंथ, वर्ग और भाषा से ऊपर उठकर समग्र मानवता की सेवा का प्रतीक बन चुका है। यहाँ राजनेता से लेकर ग्रामीण किसान तक एक पंक्ति में बैठकर प्रसाद पाते हैं — क्योंकि ब्रह्मधाम की आत्मा “वसुधैव कुटुम्बकम्” में विश्वास रखती है।

योगगुरु बाबा रामदेव जी ने ब्रह्मधाम और ब्रह्म ऋषि तुलसाराम जी महाराज को देखकर श्रद्धापूर्वक कहा –

“प्राचीन ऋषि परंपरा का सच्चा रूप यदि कहीं जीवित है तो वह ब्रह्मधाम में विराजे ब्रह्म ऋषि तुलसाराम जी महाराज हैं।”

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